Saturday, July 4, 2009

मैं जी रहा हूँ

मैं जी रहा हूँ
यही एक बात सच है
क्योंकि यही सच है
क्योंकि सच के हाथ तो होते हैं मगर
पैर नही होते
उसके सिर्फ़ एक चेहरा होता है
जो हर किसी को अलहदा दिखता है
मेरा सच और एक तुम्हारा सच
यही कहा था ना उसने जाने के वक्त
और कितना सिमट गया था मैं
जैसे कछुआ सिमट जाता है अपने कवच में
अकस्मात निकल आए थे आंसू मेरे
कटा था मेरा वजूद कतरा कतरा
कैसे भूल सकता हूँ में एक सच को
एक बीता हुआ सच
मगर फिर भी सच
सच कि तुम तुम हो
और मैं मैं
सच यह कि मैं तुम्हारे करीब से गुजरा हुआ एक कड़वी याद हूँ
सच यह कि तुम एक अभिसारिका सी
मेरे अवसाद के क्षणों
की अद्भुत स्मृति
मरे अन्त्रनतम में रची बसी
जैसे तुम्हारे बालों में चमेली की महक
जैसे तुम्हारे मुस्कान में चाँद कि प्रतीति
मैं हर बात में कई सच तलाशता हूँ
क्योंकि हर सच के कई पहलू होते हैं
जैसे मेरा सच और तुम्हारा सच
और कुछ जो न तुम्हारा सच न मेरा सच
बस वह सिर्फ़ सच होता है
कड़वा और सटीक
न मेरा न तुम्हारा
सिर्फ़ सद्चितानंद है।





1 comment:

  1. क्योंकि सच के हाथ तो होते हैं मगर
    पैर नही होते

    bahut achhi line hai...thodi si siki phipsophy pe prakaash daaliye,ise aur achhe se samjhna chahoonga...

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