Sunday, July 12, 2009

पहली मंजिल

तुम्हारे यादों के साये तले गुलाबों की क्यारियां बना दी है मैंने
उनमे खुशबू भी है और रंग भी
सुन्दरता भी है और
चुभनेवाले कांटे भी
तुम भी हो और मैं भी
बहुत सी सुरीली यादें
कुछ नमकीन से ख्वाब
खट्टे मीठे तुम्हारे ख्याल
मैं अपने साये से पूछता हूँ
बताओ यह कौन सा समंदर है
जिसका पानी मीठा है
यह कैसी बारिश है
जिसमे पानी तो गिरता नही।
मैं कुछ सोच रहा हूँ
इन्ही सोचों में डूबा
अकस्मात ही
जैसे बिजली कड़कती है
मैं उठ कर दौड़ पड़ता हूँ
जैसे पकड़ लूँगा मैं चमकती बिजली कों
बढ़ा कर हाथ और
भर जाऊंगा रौशनी से
इसी ख्याल से पूरा ही जल गया था मैं
क्या कोई इस तरह बिजली से खेलता है?





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