Friday, November 25, 2011

पग डंडियाँ


न  हो सड़क
तो नयी पग डंडियाँ बन आएगी
जी, उगा ली नयी रेखाएं मैंने हथेलियों पर
जैसे खींच आई सिलवटें मेरे माथे पर
उम्र का तकाजा नहीं
यह चेहरे का बदलत स्वरुप
ज्यों घटता बढ़ता चाँद 
ज्यों गरीब की घटती  और दुकानदार की बढ़ती आमदनी .
मेरे दोस्त मुझ पर अब यकीन न कर
मेरे हाथो में तलवार नहीं कलम आ गयी है
मेरे सर पर गाँधी टोपी नहीं
लाल कफ़न आ गया है
ले कर कुदाल और खुरपी मैं
उगाने निकल पड़ा हूँ पग डंडियाँ 
देखो तो मेरे हाथों की रेखाएं
अब और भी गाढ़ी हो चली हैं.

Tuesday, November 22, 2011

देखो तो!

कल सुबह से
बारिश है की थमती नहीं
कल रात से कालिमा है कि रूकती नहीं
एक साल से और भी है फ़साने
दिल पर भारी भारी से
सोचता रहा मैं कई दिनों से
होती रही बारिश सारी रात
बरसते रहे अँधेरे
औंधे मुंह गिरते रहे फ़साने
तब, करने को कुछ नहीं
सिर्फ धुंध
और धुंधलापन
जैसे किसी यौवन का आवारापन
दीखता है सब
समझता कुछ नहीं.