Saturday, June 27, 2009

मुझे सोचने तो दो

बड़ा थका हुआ हूँ मैं, ज़रा सोचने तो दो
किस सिम्त जायेगी यह बहार, ज़रा देखने तो दो।
पानी का बहाव देख कर कुछ ऐसा लगता है
पानी की तासीर क्या है, हाथ जरा डालने तो दो।
धुप है तेज मगर मेरी किस्मत तो देखो
पानी से जल गया हाथ, मुझे बोलने तो दो।
कैसी है बंदिश यहाँ सोचने पर दोस्त
जम्हूरियत की बात पर जरा बोलने तो दो।
जब लगेगी रोक सोचने और बोलने पर तो मर जाएगा विरोध
इसी बात पर मुझे कुछ तार जोड़ने तो दो।
मेरे नसीब में न सही, किसी और का हासिल ही सही
किसी का भी हो, कुछ मजा लेने तो दो।
मेरे रकीब मेरे हबीब तो बनो तो दर्द कम हो जाएगा
किसी और सिम्त यह रास्ता जाता नही है दोस्त.

Monday, June 22, 2009

हद है...

बारिश भी यहाँ छुप कर बरसती है
लोग भी यहाँ बहुत अनजाने से लगते हैं
यह कैसा शहर है यारों
यहाँ हर इंसान पर दाग लगा लगता है।
कल जब मैं सड़क पर निकला तो ऐसा लगा
ज्यों बादल का दम घूट रहा है, और
लगा जैसे टुकड़े टुकड़े होंगे आसमान के अब
तब मैंने भी अपनी जेब में टटोला अपने वजूद को।

दस्ते सबा में जैसे कोई ठहर गया को अपना बन कर
जैसे महताब की चांदनी बन कर मेहरबान
सहला रही हो मेरे बदन पर पड़े घाव कों
ज्यों jसावन की ठंडी बयार सहलाती है मेरे मन कों।

पहली बारिश, पहला नशा, पहला प्यार
सब याद रहते हैं
जैसे तुंहारा आना, जैसे तुम्हारा जाना
जी तुम्हारा उठना, जैसे तुम्हारा बैठना।







Sunday, June 14, 2009

सफ़ेद हाथी का दुःख

बेचारा सफ़ेद हाथी
क्यों इस कदर बदनाम है
हर निकम्मे को सफ़ेद हाथी ही कहते हैं
न जाने क्यों हर आदमी बेताब है उसे नाम देने को
सही ही वह सोचता है
क्यों काला हाथी नही पाता है बदनामी
वह भी तो हाथी ही है
मनुष्य की जाती में तो कला रंग ही शोषित हुआ है
रंग भेद पर किताबें लिखी जाती रही हैं
और भारत में तो गोरे रंग को कितना सम्मान मिला है
गोरे रंग पर इतना गुमान ना कर जैसे गीत लिखे जाते रहे हैं
काले रंग को सफ़ेद करने के क्रीम बिकते हैं
काली या सांवली लड़की की शादी में आती हैं दिक्कतें
फिर क्यों मुझ सफ़ेद हाथी को लताड़ते हो
क्यों मुझे नामों से पुकारते हो
मुझे भी गोरों की तरह सम्मान मिलना चाहिए
मुझे भी एक बहले नाम से पुकारना चाहिए
क्यों मैं ही हिकारत भरी ज़िन्दगी जीने को मजबूर हूँ
सफ़ेद हाथियों के भी अपने अधिकार और सम्मान हैं
कब हमें अपनी उचित जगह मिलेगी?

Saturday, June 13, 2009

सड़क नापती है मेरा हाथ

दिल्ली की सड़कें और उन पर चलने वाले लोग
जैसे किसी भयावह सपने से आतंकित
दौड़ते भागते, लेते हैं साँस दम तोड़
एक पर एक गिरते
एक पर एक चढ़ते
कूदते फांदते जैसे न हो कर मनुष्य हो गए हों जंगली घोडे
हर कोई है हांफता गुर्राता
हर कोई बताता है अपनी रिश्तों की कुंडली
परेशान सा पुलिस वाला किंचित हतप्रभ
बजता सीटियाँ
सुनता है कोई नहीं
आयें इस दिल्ली महानगरी में आपका स्वागत है।

Monday, June 8, 2009

उफ़ यह तन्हाई!

मार ही डालेगी अपने नींदों की कसम
कैसी बला की गर्मी है
और फिर भी तुम्हारी याद सुबह की ओस की बूंदों सी लगे है
फिर से देर तक ढली रात के अंधेरे में
सुनसान सी रौशनी में
कुत्तों के भौंकने की आवाज़
जैसे नौ बजे फैक्ट्री की साइरन
मेरे यादों के खजाने में दफन जैसे
इस दहकती गर्मी में पसीने से तर बतर
तुन्हारी यादें सहेज कर रखीं हैं
तह दर तह बिल्कुल संभाल कर
उसी तरह जैसे मैंने चाँद से गिरे
तुम्हारे आंसू संजोये थे
बस एक ख्वाब था वह भी पसीने से भीगा
उफ़ यह तन्हाई जैसे मार ही डालेगी
गर्मी भी अब दुश्मन लग रही है
तुम्हारे बगैर सब कितना बेमानी
कितना खाली।

Saturday, June 6, 2009

मेरे दोस्त तुम परेशान हो क्यों

रात परेशान है तुम्हारे लिए
मगर तुम परेशान हो न जाने किसके लिए।
एक आदमी को सुना था गुस्सा बहुत आता था
उस आदमी की जान तुम में चली गई लगता है।
ना मुझे चाहिए चाँद तारे, न ढेर सारे सिक्के जवाहरात
बस एक लफ्ज़ मीठा बोलो तो क्या जाएगा किसी का।
आज लगता है बारिश बहुत जोरों से पड़ेगी
आज तो तुम भर से बैठे हो।
चलो बाँट लेते है आज का ख़राब मौसम
कुछ तुम रो लो, कुछ मैं रो लूँ, आसमान को फटने की फिर ज़रूरत नही पड़ेगी।

आदमी किस्मत को क्यों रोता है

आदमी किस्मत को क्यों रोता है
क्या है औरों के पास की उसे खलता है।
हर सिम्त एक ही रोना सुनाईदेता है
पैसा होता तो कितना अच्छा होता है।
खाने हो ना रोटी तो क्या हुआ
उस आदमी के पास कितना पैसा है।
कभी मुझे ऐसा क्यों लगता है
न हो खुशी मगर हो पैसा तो सब अच्छा है।
खुशियों का क्या है यह तो आनीजानी है
यह तो पैसा है जो साथ निभाता है.