Saturday, June 27, 2009

मुझे सोचने तो दो

बड़ा थका हुआ हूँ मैं, ज़रा सोचने तो दो
किस सिम्त जायेगी यह बहार, ज़रा देखने तो दो।
पानी का बहाव देख कर कुछ ऐसा लगता है
पानी की तासीर क्या है, हाथ जरा डालने तो दो।
धुप है तेज मगर मेरी किस्मत तो देखो
पानी से जल गया हाथ, मुझे बोलने तो दो।
कैसी है बंदिश यहाँ सोचने पर दोस्त
जम्हूरियत की बात पर जरा बोलने तो दो।
जब लगेगी रोक सोचने और बोलने पर तो मर जाएगा विरोध
इसी बात पर मुझे कुछ तार जोड़ने तो दो।
मेरे नसीब में न सही, किसी और का हासिल ही सही
किसी का भी हो, कुछ मजा लेने तो दो।
मेरे रकीब मेरे हबीब तो बनो तो दर्द कम हो जाएगा
किसी और सिम्त यह रास्ता जाता नही है दोस्त.

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