Saturday, June 13, 2009

सड़क नापती है मेरा हाथ

दिल्ली की सड़कें और उन पर चलने वाले लोग
जैसे किसी भयावह सपने से आतंकित
दौड़ते भागते, लेते हैं साँस दम तोड़
एक पर एक गिरते
एक पर एक चढ़ते
कूदते फांदते जैसे न हो कर मनुष्य हो गए हों जंगली घोडे
हर कोई है हांफता गुर्राता
हर कोई बताता है अपनी रिश्तों की कुंडली
परेशान सा पुलिस वाला किंचित हतप्रभ
बजता सीटियाँ
सुनता है कोई नहीं
आयें इस दिल्ली महानगरी में आपका स्वागत है।

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