Wednesday, December 14, 2011

रुको तो ज़रा ..


मेरे माजी से आती सदा
मेरे दीवानेपन  का  पूछती  सबब
क्या  बताऊँ  मैं
मुझे  तो कुछ  भी याद नहीं
फिर हटा कर फूलों को
पढ़े  सरे  सफे  तो याद आया
यह  तो वही  है
जिसने  भरे  बाज़ार में झुकी आँखों से
दिल भर कर देखा था
देने को था हाथ में एक ख़त
और लरजती ज़बान से कहा था
रुको तो...

रोको तो ज़रा ..

मेरे माजी से आती सदा
मेरे दीवानेपन  का  पूछती  सबब
क्या  बताऊँ  मैं 
मुझे  तो कुछ  भी याद नहीं
फिर हटा कर फूलों को
पढ़े  सरे  सफे  तो याद आया
यह  तो वही  है
जिसने  भरे  बाज़ार में झुकी आँखों से
दिल भर कर देखा था
देने को था हाथ में एक ख़त
और लरजती ज़बान से कहा था
रुको तो...