देखो इस तरफ
इतना सारा धुआं है
फिर आग कहाँ छुप गयी
उस आग की गर्मी और रौशनी कहाँ चली गयी
ढूंढता रहा हूँ मैं
तिनकों में दबी आग
सिसकियों में दबीचीख की तरह
मेरे अरमानो की निकली बारात
किस किस को दिखाएँ जख्म अपने
कहाँ ले जाएँ अपनी सोच को
कैसी कैसी राहों से हो कर गुजरे हमारे काफिले
कैसी आँधियों को छोड़ आए हम
फिर भी, ऐसा लगता है
जैसे बादलो की धुंधली परछाइयों में
भूले बिसरे सुने हुए अफसाने
टुकड़ों में गिरते हैं आसमान से
चलो सरहदों के पार
चुन कर लाते हैं रंग बिरंगी तितलियाँ।
Monday, April 26, 2010
Sunday, April 18, 2010
देखो इस तरह भी
मेरे आशियाने के कुछ तिनके उड़ गए हैं
ठहरो जरा में फिर चुन कर लाता हूँ
देखूं तो में किन मौजों में बहे हैं मेरे माजी की कहानियाँ
किस सिम्त गयी हैं मेरी ख्वाबों की दुनिया
सोच कर देखा तो और उलझ गयी बातें
उठा कर उन ख्वाबों के गिरे हुए रेज़े
सोचता रहा देर तक
क्या करूं में इनका
कैसे दिल बहलाऊँ अपना ?
चलो याद करते हैं गुजरे ज़माने के फ़साने
शायद लबों पर भूली सी कोई तबस्सुम
फिर से बहार ले आये
फिर आ जाये हौसला तिनके चुन ने का.
ठहरो जरा में फिर चुन कर लाता हूँ
देखूं तो में किन मौजों में बहे हैं मेरे माजी की कहानियाँ
किस सिम्त गयी हैं मेरी ख्वाबों की दुनिया
सोच कर देखा तो और उलझ गयी बातें
उठा कर उन ख्वाबों के गिरे हुए रेज़े
सोचता रहा देर तक
क्या करूं में इनका
कैसे दिल बहलाऊँ अपना ?
चलो याद करते हैं गुजरे ज़माने के फ़साने
शायद लबों पर भूली सी कोई तबस्सुम
फिर से बहार ले आये
फिर आ जाये हौसला तिनके चुन ने का.
Saturday, April 17, 2010
इस पेड़ की छाँव में
बसे हुई बस्ती में
उजड़े हुए कुछ घर
बीती हुई यादों के सहारे जीते कुछ लोग
अपने आप से करते बेमानी से सवाल
इन्ही कुछ घरों में
छिपी कुछ कहानियाँ
मेरे किसा गोई का कोई क्या करे।
उजड़े हुए कुछ घर
बीती हुई यादों के सहारे जीते कुछ लोग
अपने आप से करते बेमानी से सवाल
इन्ही कुछ घरों में
छिपी कुछ कहानियाँ
मेरे किसा गोई का कोई क्या करे।
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