Monday, April 26, 2010

देखो इस तरफ
इतना सारा धुआं है
फिर आग कहाँ छुप गयी
उस आग की गर्मी और रौशनी कहाँ चली गयी
ढूंढता रहा हूँ मैं
तिनकों में दबी आग
सिसकियों में दबीचीख की तरह
मेरे अरमानो की निकली बारात
किस किस को दिखाएँ जख्म अपने
कहाँ ले जाएँ अपनी सोच को
कैसी कैसी राहों से हो कर गुजरे हमारे काफिले
कैसी आँधियों को छोड़ आए हम
फिर भी, ऐसा लगता है
जैसे बादलो की धुंधली परछाइयों में
भूले बिसरे सुने हुए अफसाने
टुकड़ों में गिरते हैं आसमान से
चलो सरहदों के पार
चुन कर लाते हैं रंग बिरंगी तितलियाँ।


Sunday, April 18, 2010

देखो इस तरह भी

मेरे आशियाने के कुछ तिनके उड़ गए हैं
ठहरो जरा में फिर चुन कर लाता हूँ
देखूं तो में किन मौजों में बहे हैं मेरे माजी की कहानियाँ
किस सिम्त गयी हैं मेरी ख्वाबों की दुनिया
सोच कर देखा तो और उलझ गयी बातें
उठा कर उन ख्वाबों के गिरे हुए रेज़े
सोचता रहा देर तक
क्या करूं में इनका
कैसे दिल बहलाऊँ अपना ?
चलो याद करते हैं गुजरे ज़माने के फ़साने
शायद लबों पर भूली सी कोई तबस्सुम
फिर से बहार ले आये
फिर आ जाये हौसला तिनके चुन ने का.

Saturday, April 17, 2010

इस पेड़ की छाँव में

बसे हुई बस्ती में
उजड़े हुए कुछ घर
बीती हुई यादों के सहारे जीते कुछ लोग
अपने आप से करते बेमानी से सवाल
इन्ही कुछ घरों में
छिपी कुछ कहानियाँ
मेरे किसा गोई का कोई क्या करे।