Monday, April 26, 2010

देखो इस तरफ
इतना सारा धुआं है
फिर आग कहाँ छुप गयी
उस आग की गर्मी और रौशनी कहाँ चली गयी
ढूंढता रहा हूँ मैं
तिनकों में दबी आग
सिसकियों में दबीचीख की तरह
मेरे अरमानो की निकली बारात
किस किस को दिखाएँ जख्म अपने
कहाँ ले जाएँ अपनी सोच को
कैसी कैसी राहों से हो कर गुजरे हमारे काफिले
कैसी आँधियों को छोड़ आए हम
फिर भी, ऐसा लगता है
जैसे बादलो की धुंधली परछाइयों में
भूले बिसरे सुने हुए अफसाने
टुकड़ों में गिरते हैं आसमान से
चलो सरहदों के पार
चुन कर लाते हैं रंग बिरंगी तितलियाँ।


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