Sunday, January 29, 2012

जो भविष्य था

जो मैं था वह अब कहीं नहीं है
कड़ाके की ठण्ड में ढूंढता रहा मैं
मसलता रहा हाथ और करता रहा  कोशिश आग उगाने की
कुछ आया नहीं हाथ
बस वही खड़ा अकेला मैं अपने खालीपन को भरने का उपक्रम करता रहा
और थक गया.
फिर सोचा
क्यूँ न चल कर आगे
अपने भविष्य  में
देखें क्या होता है मेरे आज का
नीला पेड़ मुस्कुराया मेरी  सोच पर
पत्ते लगे हिलने
छोटे से एक अनजान पौधे ने तब 
कानों में धीरे से कहा
लम्बी कतार है उस काउंटर पर
तब तक तो भविष्य वर्त्तमान  हो ही जाता है.
विस्मृत इस खोज पर
ताकता आसमान को
स्तम्भ सा खड़ा वहीँ
मैं सोचता रहा 
शुन्यता का अद्भुत एहसास 
जो नहीं था मगर अब है और नहीं रहेगा
कड़ाके की ठण्ड में जो म्देती नही आगाज़ 
तपती गर्मी का
उफ्फ्फ कितनी विषमता है.



Thursday, January 5, 2012

चांदनी की राहों पर



बस एक हम है रत कि चांदनी में रौशनी थामे   
ज़रा छू कर देखो इस अंगारे  की तबस्सुम 
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कहते हैं इस राह पर जो चला वही खोया
चलो देखते हैं यह रह जाती कहाँ तक है
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एक बार तुमने कहा था मोम कि तरह क्यूँ पिघल जाते हो
मैंने जलते मोम में डाल कर हाथ जाना उसकी तासीर 
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मेरे अरमानों को छू कर देखो तो
नदी के पार साहिल के गिले रेत सा क्यूँ है
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मेरे वजूद का क्या ठिकाना, क्या पता
ढूंढता रहा, और इस मोड़ पर ठहर गया मैं 
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मैंने सोचा क्या था मुझमे जो वह छोड़ गया मुझे
पलट कर देखा तो लगा मेरा साया गायब था
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मुझे याद आती है उन गलियों के पेचीदगियां 
जिनमे घूम कर हमने सीखा था सीधे राह चलना
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