Tuesday, July 30, 2013

अब पूछो तो कहूं

एक सूखा पेड़ 
टहनियों पर बैठी कई चिड़िया 
पत्तों का क्या गम करे 
नए की हुई है तैय्यारी 
डालों पर बैठी चिड़िया सब इसी इंतज़ार में 
आएगी कभी हरियाली 
आएगी कभी तो रंग भरी 
अभी तो हवा भी है ज़र्द 
फिर कैसे हो लबों पर तबस्सुम 
पानी का अक्स 
जैसे आंधी में उड़ते सूखे पत्ते 
जैसे खुशबू  से पटी  सांसें 
जैसे ख़ामोशी में लिपटी एक उम्र की कहानी 
जैसे उफनती नदी में डोलता पत्ता 

उडती रही सारी  चिड़िया 
एक एक कर 
पत्तों का वजूद हिलता रहा 
सूखा पेड़ सोचता रहा 
अब जब आयेगी बहार 
तो पूछेंगे 
जाते कहाँ हो हमे छोड़ कर इन महीनो में 
कैसे रोते हैं हम इन महीनो में 
पूछो तो !