एक सूखा पेड़
टहनियों पर बैठी कई चिड़िया
पत्तों का क्या गम करे
नए की हुई है तैय्यारी
डालों पर बैठी चिड़िया सब इसी इंतज़ार में
आएगी कभी हरियाली
आएगी कभी तो रंग भरी
अभी तो हवा भी है ज़र्द
फिर कैसे हो लबों पर तबस्सुम
पानी का अक्स
जैसे आंधी में उड़ते सूखे पत्ते
जैसे खुशबू से पटी सांसें
जैसे ख़ामोशी में लिपटी एक उम्र की कहानी
जैसे उफनती नदी में डोलता पत्ता
उडती रही सारी चिड़िया
एक एक कर
पत्तों का वजूद हिलता रहा
सूखा पेड़ सोचता रहा
अब जब आयेगी बहार
तो पूछेंगे
जाते कहाँ हो हमे छोड़ कर इन महीनो में
कैसे रोते हैं हम इन महीनो में
पूछो तो !