Sunday, January 12, 2014

कहो तो रेत से क्या कहें

रेत पर पसरा हुआ तुम्हारा  ही अक्स था 
जो  छुआ मैंने तो मेरी पहचान बन गयी।  

आज कुछ हुआ तो ज़रूर है क्यूंकि 
किया तुमको याद और हवा ख्याल बन गयी।  

जज़बे में था इस शहर के तौर तरीको का एहसास 
 मुझे से मिली तो हवा भी  बदहवास बन गयी। 

सोचो ज़रा क्या हुआ है हमारी इल्म औ तालीम को 
कि एक खूबसुरत सी लड़की बला  बन गयी। 

या खुदा  रहम कर अपने बन्दे पर एक बार 
जो मेरा थी अब जाहिर-ए आम बन गयी।  

Thursday, January 2, 2014

ज़िन्दगी भी क्या है

ज़िन्दगी तुम्हे छुआ है मैंने 
मेरी चाहतों का काफिला है यह 
न कहो तो भी मैं मान लूँगा कि 

मेरी मेरे आंसू का सील सिलसिला है यह. 

जिन गलियों से गुजरे वही बिसर गयी यादों से 
जैसे पसर गयी सुबह कि धुप शाम तक 
थाम कर दामन जो चाहा था चलना 
भूल गयी राहें, खो गयी मंज़िलें। 

आओ कि अब मौसम भी हसीं है 
आओ कि अब ख्यालों में रवानी बाकी है 
मेरा वजूद मुझसे पूछता है हौले से 
अच्छा बताना तुम्हारा महबूब-ए सफ़र 
अब भी महबूब -ए ख्याल है क्या ! 

वक़्त के गुजरने से सफ़र का क्या ताल्लुक 
मेरे जहन में अब भी वही खुश्बू बाकी है 
एक सफ़र है गलियों और मोड़ों से भरी 
कुछ तुमसे हरी, कुछ मुझ से भरी।