Tuesday, November 22, 2011

देखो तो!

कल सुबह से
बारिश है की थमती नहीं
कल रात से कालिमा है कि रूकती नहीं
एक साल से और भी है फ़साने
दिल पर भारी भारी से
सोचता रहा मैं कई दिनों से
होती रही बारिश सारी रात
बरसते रहे अँधेरे
औंधे मुंह गिरते रहे फ़साने
तब, करने को कुछ नहीं
सिर्फ धुंध
और धुंधलापन
जैसे किसी यौवन का आवारापन
दीखता है सब
समझता कुछ नहीं.




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