Monday, April 13, 2009

सीता : अगर तुम कलयुग में जन्मी होती !

सीता तुम थी तो अग्यात्कुल्शिला ही ना
मगर फिर भी जनक ने पाला तुम्हे
और तुम्हे राम जैसा पति भी मिला
तुम सी प्रिथ्विपुत्री जब अयोध्या गई होगी
तब कैकेयी या मन्थरा ने क्या खरी खोटी नही सुनाई होगी ?
क्या कौशल्या के मन में तुम्हारी शुद्धता पर शंका के स्वर न उठे होंगे?
क्या दशरथ ने तुम्हारे जन्म से सम्बंधित प्रश्न न किए होंगे?
जिस अयोध्या के धोभी ने रावण के पाश से मुक्त होने पर भी तुम पर लांछन लगाया था
क्या वही अयोध्या तुम्हारे आने के समय भी शशंकित नही थी?
हर युग में
आज भी
हे सीता
तुम शशंकित और तिरिस्क्रित हो
और पुरूष तुम्हारे भाग्य का बन विधाता
विद्रूप से है मुस्कुराता
अफ़सोस उस युग में भी राम ने भी महज शक पर त्याग दिया था
आज भी तुम कलंकित और बंदिनी हो
चाहे गीतांजलि नागपाल हो या अमृता सिंह या रेनू दत्ता
तुम हो बस परित्यक्ता
इस पुरूष बहुल समाज में बस एक काम की चीज़ हो
आदमी का प्यार तो पा सकती हो
उसका सम्मान नहीं
आदमी वैसे ख़ुद को भी नहीं पहचान पता है
तो तुम क्या हो
वह तो बस रिश्ते तलाशता रहता है
और मिलता है उसे सिर्फ़ एक के बाद एक --शरीर.

6 comments:

  1. sawal uthatee kavita. sundar nirupan . aap mere blog par 'ram kee vyakti pareekhscha ' padhen . yahee sawal utha raha hoon .

    hindee blogjagat me aapka swagat hai !

    word verification hata den to aap tak pahunchna aasan hoga .

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  2. आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं.
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  3. आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं.
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  4. bahut khoob!!
    dil ko chhoone vale bhavon ko samete aapki rachanaa ...........

    चिटठा जगत में आपका हार्दिक स्वागत है आपके लेखन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं ...........

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  5. बहुत मर्म है बात मे विचार बुलन्द है। बधाई।

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