Wednesday, April 29, 2009

मैं क्या था !

कहाँ से चल कर यह मैं कहाँ गया हूँ
इन बर्फीली हवाओं का क्या करुँ
मेरे होने को सर्द कर रही हैं
उठ रही है मेरे वजूद पर शंकाएँ
मेरे ज़मीर पर उठता हुआ गुबार
मेरी सोच को धुंधला कर देती है।
मेरी फ़िक्र अब यह नहीं कि क्यूँ
मेरी जिस्म में जुम्बिश नही होती
क्यूँ मेरी पलकें अब धुप में नही झपकती।
मेरा तो एक एकाकी सा एहसास
एक गरमाई हुई दुपहरी को
गर्म तपते सड़क पर जैसे दौड़ता हुआ
हांफता सांसे लेता
मैं
एक एकाकी
ग्रहण लगे चाँद सा
बुझे हुए दीप में गुम
इन्ही बर्फ सी ठंडी सोचों में
बस अपने अकेलेपन का गर्म एहसास
अपने हाथो में होती धड़कन
जिंदा होने का आभास दिलाती है
वरना यह भी कोई ज़िन्दगी है यारों !

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