Sunday, April 12, 2009

ए मेरे दोस्त

ए मेरे दोस्त
कैसे बताऊँ मैं तुम्हे
की कैसे कैसे राहों से गुज़र कर
मैं तुम्हारे पास आया हूँ
क्यूँ मैं चुनता रहा हूँ दिवाली की जली फुलझरियां
क्यूँ मैंने होली के गुलाल अब तक बचा कर रखा है
क्यूँ मेरी हथेलियों में अब भी है तुम्हारे दमन पर लगे खुशरंग हिना की प्यारी सी खुशबू
इतने सारे सवाल, इतने सारे जवाबों को मुन्तजिर
मेरे माजी से झांक झांक कर
मेरे आज को प्रणाम कर रहे हैं।
मेरे दोस्त आओ गले लग जाओ
क्या हुआ अगर आज हम अजनबी हैं
क्या हुआ अगर आज तुम किस्सी और जैसे लगते हो
और मैं उसी मोड़ पर
वहीँ खड़ा हूँ
ताकता हुआ राहें
जैसे कोई टूटी सी एम्बेसडर कार
सालों से किसी चालक के इंतज़ार में
बस अपने उडे हुए रंगों के साथ
करता है अनवरत इंतज़ार।

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