Tuesday, December 8, 2009

हद है!

उसने चौंक कर कहा
मेरी आवाज़ क्यों गूंजती है
उस गूंजती आवाज़ ने हंस कर कहा
देखो तुम्हारी अस्मिता हूँ मैं
पकड़ो मेरा हाथ
देखो तो कितनी ठण्ड है यहाँ.

1 comment:

  1. इस कविता की व्याख्या नहीं की जा सकती । सिर्फ महसूस की जा सकती है । बेहतरीन। बधाई।

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