Thursday, December 10, 2009

फटे पाँव

देखो अपने फटे पाँव
जिन पर पड़े हैं पत्थरों के निशाँ
देखो तो खून हे धब्बे भी हैं वहां
पैरों पर थकान की कहानियाँ
मेरे अतीत को मेरे आज से जोडती हैं
उनके हुस्न को मेरा सलाम।

2 comments:

  1. वाह
    अत्यंत उत्तम लेख है
    काफी गहरे भाव छुपे है आपके लेख में
    .........देवेन्द्र खरे

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  2. बहुत अच्छा । प्रेरक। बधाई स्वीकारें।

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