Thursday, December 24, 2009

मैंने सुना है ....

इस रात के पिछवाड़े में
एक शाम छुपी सी हंस रही है
एक सुबह का करती हुई इंतज़ार
उफ़ यह बेक़रारी
और रात की निर्दोष उम्मीद.

1 comment:

  1. बहुत अच्छी रचना। क्रिसमस पर्व की बहुत-बहुत शुभकामनाएं एवं बधाई।

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