Wednesday, May 13, 2009

मेरे हसीं ख्वाब

किसी रात के गहरे अन्धकार में
मैं सुनता हूँ सन्नाटों की चीख पुकार
लोग सुन कर भी सो रहे होते हैं
मगर मैं पुरे होश में
नींद से कोसों दूर
अपनी यादों के साये में
जब काला अन्धकार पी रहा होता हूँ
तब तुम बहुत याद आते हो।
मेरी ज़रूरतों का ताना बना
मेरी मजबूरियों का टोकरा
तुमसे अनजानी
मुझसे जनम जनम का रिश्ता
मेरे आँगन जैसे बना लिए अपना बसेरा
बस मेरे लिए ही बनी हो जैसे
मेरे हसीं ख्वाब
क्यूँ हो गए हो मुझसे दूर
क्यों मैं पराया हो गया हूँ
आ भी जाओ की मैं अब भी
वही हूँ
जिस से कभी थी आशना
जिस से कभी था दोस्तों सा प्यार
मैं अब भी वही प्यारा सा दोस्त हूँ तुम्हारा।

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