Wednesday, May 6, 2009

एक दिल्ली यह भी

तुम्हारी दुनिया से मुख्तलिफ
हमारे तुम्हारे ख्वाबों से अलग
बिल्कुल बेरंग
बेस्वाद
बेसुरा और बेताला
मेरे अरमानों पर करता वार
एक दिल्ली यह भी है।
सरसराती कारों तथा बड़े बंगलों के शहर में
हमरे लिए महज एक ख़बर
जिस पर हम चाय की चुस्की पर
हैरान होने का आनंद ले सकते हैं।
रातों में लुटती मरती निरीह महिलाएं
और बिखरा हुआ उदास शासन तंत्र
सिर्फ़ अख़बारों के काले मोटे हर्फ़
हमें चौंकाने को बेताब।
एक तालिबान यहाँ भी है
दिन और रात में घूमता है सड़कों पर
तलाश में की कोई शिकार मिले
डरे हुए माँ बाप अपनी बेटियों की कुशल वापसी के लिए
करते दुआ
मगर मरती है कई निर्दोष बालिकाएं
कभी गाड़ी के अन्दर
तो कभी गाड़ी के नीचे
अफ़सोस
की सरकार फिर भी मांगती है वोट हमसे
हमारी बहु बेटियों के नाम पर
और मैं चिल्ला भी नही पता.

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