Tuesday, May 31, 2011

धब्बे

 हाथों पर लगे रक्त के धब्बे
मुंह पर पुती सियाही 
हौसला है पस्त
किस बात से करे हम 
किस्मत  से मुंहजोरी.
हर एक दिशा में 
हर एक कहानी में
उन धब्बों की दिखी है छवि
मैं स्तब्ध, अशांत, मूक. 
एक अभिसारिका सी 
विस्मृत पलों की देती गवाही
मैं चुप चाप
मल कर अपने हाथों को
जिन्न पैदा करने की कोशिश करता रहा.
धब्बे अब नहीं दिख रहे.



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