मेरी दृष्टि पटल पर एक धुंधला सा चेहरा
किसका था
याद नहीं
सोचता रहा, जागते सोते..
कौन है जो आ कर मेरे अतीत को देता है थपकियाँ
जगाता है मेरे सोये हुए अरमानों को
पूछता है मेरा नाम और
बस मुस्कुरा भर देता है.
मैं जा कर अपने अतीत में
खोजता हूँ हर कोना, हर लम्हा,
ऐसा कोई शख्स
जो मेरे पास तो था
पर निकट नहीं था
जो मेरा था
मगर अपना नहीं था
अपना और पराये में
एक घमासान
मेरे सोच पर लगी पाबंदियां
ठहरो, ज़रा कुछ सोच उधार मांग लूं.
गहन अभिव्यक्ति
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