आ बैठ कर छत की मुंडेर पर
सुनकर कबूतरों की गुटर गु
थाम कर तुम्हारा हाथ
चूम लूं सने हाथों को
रच जाये हीना की खुशबू .
उतरते चाँद को देखो
हो रहा उदास
भय कम्पित, कि
आयेगा सूरज तो
भूल जायेंगे सब चाँद को.
तुम करो बात और मैं सुनता रहूँ
तुम कहो ग़ज़ल और मैं सुनता रहूँ
थामें तुम्हारा हाथ मैं
ताकता रहा चाँद को
चाँद भी ऐसा नहीं
मेरे पड़ोस के गोयल साहब की तरह
रोज़ देर से आते हो
और फिर दिनों गायब रहते हो.
चाँद भी ऐसा नहीं
मेरे पड़ोस के गोयल साहब की तरह
रोज़ देर से आते हो
और फिर दिनों गायब रहते हो.
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