Monday, November 8, 2010

मेरी कहानी

सुनी मैंने
अपनी कहानी
उसकी ज़बानी
आधी सच्ची
आधी बेमानी।
अजीब सी थिरकन
उड़ता है मन
लो पकड़ लो
धागा इस पतंग का
तुम्हारे हाथों
कितना महफूज़ मैं।
ऊपर आकाश में
देखता नीचे
कितनी छोटी लगती तुम
कितना हल्का लगता मैं
विस्मृत मैं
ताकता ही रहा
और हल्का होता गया मैं.

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