Tuesday, November 9, 2010

क्या सुनाऊँ मैं

आज चुप हूँ मैं
जो चाहता था कहना
वही बात मुझ पर बाकी है
हर किसी को सुनना अपनी कहानी
इतना आसान भी तो नहीं।
सोचा तो था कि थाम कर हाथ किसी का
कहेंगे बात दिल कि
मगर कुछ कहता
उस से पहले ही वह शर्मा गया।
बीत गया इतना वक्त और हमने कुछ कहा ही नहीं
बस बैठ कर गुल मोहर के नीचे
चुनते रहे रंगीन फूल
भर भर अंजुली।


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