Friday, November 5, 2010

एक सफा पीला सा

तुम्हारे हाथ का लिखा हर अलफ़ाज़
अब भी ज्यों जाड़े में लगे घाव की तरह कितना नया लगता है
छू कर देखा तो हर हर्फ़ में चुभन महसूस होती है
ठन्डे पड़े हाथ को राख से क्या?
ज़ेहन में आया एक ख्याल
पेशानी पर उग आया पसीना
मुंह में खट्टा सा स्वाद
हाथों में एक नयी जुम्बिश
तुम्हारे बिस्तर के नीचे रखे
उन पीले पड़ गए कागजों पर
लिखी क्या दास्ताँ
किसकी कहानी
किसकी ज़बानी
किसको सुनाना है
कहाँ से शुरू
कहाँ तक जाना है
इतने सारे सवालों का
कोई जवाब होगा क्या?

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