Saturday, November 13, 2010

ख्याल

ऐसे में आता है एक ख्याल बार बार
क्यों मिले थे हम, क्यूँ हुए अब तार तार।
मिलने की ख़ुशी थी न अब है जुदाई का ग़म
मेरे हसीं यार हम कैसे हुए इतने बेज़ार।
किसी और ज़मीन पर, गैरों से करो प्यार
यह कैसा इम्तिहान है, यह किस तरह का मलाल।
ज़ाहिर न करो मुहब्बत तो इज़हार -ए-शिकायात तो करो
मेरे नसीबे यार, कुछ तो करो इकरार।
मैं चला जाऊँगा मगर इतना तो बताओ
किस सिम्त गयी खुशियाँ, कहाँ गया सारे जहाँ का प्यार?

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