Monday, February 22, 2010

चुप भी रहो!

समुद्र पर खड़ा

मैं अपने हाथों में लिए पहाड़ी बर्फ

बेस्वाद जिव्हा से

खा रहा था मूंगफली

यह सोचता हुआ कि यह भी कैसा दाना है

जिसका तो नाम ही नहीं बचेगा

छिलके तोड़ हम बीज भी तो खा जाते हैं।

गरज कर समुद्र ने कहा

चुप भी रहो

मैं तो अपनी ही आवाज़ से परेशान हूँ

अब यह

मूंगफली तोड़ने कि आवाज़

है कि कान फाड़े डालती है।

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