Sunday, February 7, 2010

ऐ लड़की

ऐ लड़की सुनो ज़रा
तुम्हारे हाथों कि लकीरें तो देखूं मैं
यह लकीरें क्यों बनती हैं हमारे हाथों में
सालों से ढोते बोझ इनमे छले पड़ जाते हैं
सूख कर घाव अपने निशाँ छोड़ जाते हैं
और तुम इन्हें लकीरें कह देते हो !

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