Wednesday, June 9, 2010

जब कहने को कुछ भी न हो

देखो जरा मुड़ कर
एक रास्ता छूटा है
नुक्कड़ पर, मोड़ कर पैर एक कौव्वा
काफी देर से बैठा है
उड़ता ही नहीं।
सामने एक दूकान में
बैठी एक लड़की फेंकती रही दाना
कव्वे ने खाया नहीं
बस चलता रहा यही सब
देर तक।
कहीं से फिर सुनायी दी
किसी के हंसने की आवाज़
देखा जो मुड़ कर तो कोई नहीं
अभी भी वही लड़की
फ़ेंक रही थी दाना
और अभी भी वह कौव्वा
चुप चाप बैठा
टुकुर टुकुर ताक रहा था।



No comments:

Post a Comment