Thursday, June 3, 2010

क्या कहना है !

मेरे हर सवाल का वही घिसा पिटा सा जवाब
क्यों हर उलझन का बस फिर वही समाधान
नए हौसलों का कुछ काम नहीं यहाँ
नए फैसलों पर होते रहे हैं ऐतराज यहाँ
मुस्कुराहटों पर लगी है पाबन्दी भी
हाथ के इशारों पर हुए बलवे
बाँहों की हरकत से हुए हैं कई अहम् फैसले
बदलते हैं रंग कई चेहरों के
थाम कर अपना चेहरा
सोचता हूँ अपनी किस्मत पर
क्या कहूं? क्या छुपाऊँ?

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