Wednesday, May 19, 2010

हे राम!

गाँधी तुम मरे नहीं
किसी गोडसे की गोलियों से नहीं मरे तुम
तुम्हें मारने की योजना तो सदियों से चली आ रही थी
वैसे ही जैसे तुम्हारे आने की उम्मीद में जी रहे थे सदियों से
और फिर तुम आ गए औचक ही
मींच कर आँखें देखा तो वह तुम नहीं थे।
वह तो घुटनों तक धोती पहने, नंगा बदन
लिए हाथ में एक लम्बी सी लाठी
तुम कहाँ चले गए?
अब और कितनी सदियाँ रुकना होगा
कब मिलेगी आज़ादी हमें
कब होंगे हम आज़ाद अपने ही जेल से
बंधे हाथ हमारे
सिले होठ भी
किस तरह पुकारें तुम्हारा नाम
लो अब तो नाम भी भूल रहा है मुझे
ओ लाठी वाले बाबा
कहीं गाँधी को देखो तो मुझे उसका पता बता देना.

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