Monday, July 26, 2010

ग़ालिब जी

देखा ग़ालिब को तो और ठहर गया मैं
डीडीए के ऑफिस में एक एल आयी जी फ्लैट के लिए
लाइन लगाये खड़े थे।
पीछे खड़े आदमी ने पूच्छा
भाई कोई जन पहचान है यहाँ
कोई सिफारिश
या कोई एम् एल ऐ जानता है
या फिर किसी आयी ये एस ऑफिसर कीरिश्तेदारी है
मगर ग़ालिब जी तो इन बड़े नामो से वाकिफ नहीं थे।
फिर गर्दन झुकाए ही कहा
बादशाह सलामत से सिफारिश करवा सकता हूँ
आदमी ने पूछा
यह क्या कोई राजनेता हैं?
ग़ालिब चौंके
यह राजनेता कौन होते हैं
क्या कोई मनसबदार या नवाब है?
आदमी ने सोचा
बेचारा किसी को भी नहीं जनता
फ्लैट कैसे लेगा?
फिर पूछा
करते क्या हो
ग़ालिब जी बोले
शायर हूँ, मसनवी है मेरी
ओह तो यह बात है
आदमी ने सोचा बेचारा पूरा ही पागल है
अपने को शायर कहता है और एक फ्लैट के लिए लाइन में खड़ा है
ज़रूर टुच्चा शायर होगा ।
सो बोल पड़े
भाई कुछ काम करो कि दुनिया जाने
यह क्या हर मुस्लमान कि तरह शायरी करते फिरते हो
कुछ ऐसा करो कि काका नगर में सरकारी फ्लैट मिल जायेगा
और साथ में पद्म भूषण भी
मियां ग़ालिब यह तो समझ गए
दुनिया बदल गयी है
अब घोड़े कि जगह मेट्रो से बल्लीमारान जाने की सोच ली .

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