Tuesday, June 8, 2010

एक दिवास्वप्न यह भी!

दिल्ली में तो कुछ भी सपना हो सकता है
सड़क पर चल कर उस पार जाना
चलती बस के नीचे नहीं आना
पुलिसके हाथों पिट न जाना
या फिर चलती गाडी से अपने मुंह पर पान का पीक न पड़ जाना
धुएं की मार से फेफड़ा जल न जाना
या यूं ही रोटी को तकते आँखों का सूख नहीं जाना
यह दिल्ली है भाई.

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