Wednesday, February 8, 2012

उफ़ यह इंतज़ार...

तकते रहिये घडी और वक़्त गुजरे नहीं
इस इंतज़ार को क्या कहेंगे.
--
उनका न आना भी एक रिवाज़ सा हो गया था
यह हम थे की फिर भी पुरसुकून करते जाते थे इंतज़ार.
---
एक उनकी हंसी, एक उनके बदन की नमकीन खुशबू
सब याद है मुझे अपने कतरों में 
-----
मैंने भी सोचा थाम लूं वक़्त को
मगर खोली मुट्ठी तो पाया सिर्फ महकता रेत
----
ज्यों जाड़े की कच्ची धुप और बंद आँखें
मेरी आगोश में नरम पीली धुप और तुम. 


No comments:

Post a Comment