Monday, January 4, 2010

कल शाम से

एक बात करनी थी तुमसे
कुछ नए पुराने घाव जो भरे नहीं हैं अभी तक
कुछ पल जो अभी तक काटते हैं मुझे
बोलो तो कोई जवाब है तुम्हारे पास ?
शरद ऋतू में यह सीधी धुप का सा एहसास
सोचो तो
यह नयापन कहाँ से आया है
कल शाम से मैं यह सोच रहा हूँ
मगर जवाब है कि
सर्दी की सुबह का फायदा उठा कर
कही छुप गया है।
यही नियति है सवालों का।

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