Monday, June 18, 2012

जब तुमने कहा मुझे दोस्त

जब तुमने कहा मुझे दोस्त  तो यूँ लगा मुझे
जैसे आई है पूरब से वतन की ठंडी बयार.
मेरे हमदम मेरे दोस्त, मुझे क्यों नहीं आती नींद रातों को
क्यों मैं जगता रहता हूँ चाँद ढले तक
क्यों मेरे कश्कोलों में सैलाब नहीं लहराता
क्यों मेरे हथेलियों में पानी नहीं ठहरता
धुप आती तो है, मगर नूर नहीं बरसाती
गाढ़े रंग से लाल हुआ है आसमान
मेरे पैरों में अब वह खनक नहीं बाकी
ए मेरे दोस्त इस सर्द हवा को तो रोक लो सीने
मैंने भी तो तुम्हारे लिए आग अपने सीने पर लिया था।

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