Saturday, February 5, 2011

मुंडेर पर बैठी ठंडी हवा

देखो तो यह कौन खड़ा है छत की मुंडेर पर
लगता है लगा गए पर मेरे अरमानों को.
एक चांदनी सी रौशनी है, एक खिला हुआ सा चेहरा है
देखो जरा गौर से, मेरे महबूब सा लगता है.
ऐसा भी होता है, बैठ कर मुंडेर पर और ताके है कोई
कोई है आने वाला, कोई है जिसका होता है इंतज़ार.
यह चाँद है, या फिर है कोई रकासा, या कोई हुस्न परी
मेरी जानिब से गयी है ठंडी बयार, जरा छू कर तो देखो.

1 comment:

  1. बेहद खुबसुरत। जारी रखिए। आभार।

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