Sunday, December 19, 2010

एक इम्तिहान और भी है!

देखो ज़रा मुड़ कर इस तरफ और बोलो
मेरा बचपन मेरे वजूद से जुड़ गया गया है जैसे
थाम कर दामन मेरा, कहता है मुझसे
मैं कल था तुम्हारा
और वह जो गुज़र रहा है तुम्हारे साथ।
सब बातें , सारे फ़साने, और गुजरे हुए वह कुछ पल
किनको मैं बताऊँ अपने साथ हुए हादसों के बारे में
जो मेरा था कहीं रह गया इन्ही मुंडेरों पर
जैसे लटका रहता है चम्गादर
डराता रहता।
और मैं फिर भी नहीं छोड़ता
दामन अपने माजी का
रोता रहा देर तक
थाम कर हाथ उसका
गीले हूआ मेरे आंसू से उसका मन भी।

Thursday, December 2, 2010

एक भय है

काले से रास्ते

सफ़ेद धुआं

डर हो रहा गुंजायमान लोग भागते अनगिनत दिशाओं में

लिए अपने चेहरे अपने हाथों में

देखते रहे आसमान को

कोई करिश्मा होने वाला हो जैसे

तभी एक बूँद टपका कहीं से

लोग दौड़ पड़े बेतहाशा

एक दूसरे पर गिरते पड़ते

ओह यह तो दूध का बूँद है

बिलकुल सफ़ेद

वैसा जैसे अमृत

सफ़ेद मगर कितना पारदर्शी।

लेने को बढाया हाथ मगर

दूरियां लम्बी होती गयी

मेरी पहुँच से बहार

दूध की बूँद

अब अमृत हो गयी.