Thursday, December 2, 2010

एक भय है

काले से रास्ते

सफ़ेद धुआं

डर हो रहा गुंजायमान लोग भागते अनगिनत दिशाओं में

लिए अपने चेहरे अपने हाथों में

देखते रहे आसमान को

कोई करिश्मा होने वाला हो जैसे

तभी एक बूँद टपका कहीं से

लोग दौड़ पड़े बेतहाशा

एक दूसरे पर गिरते पड़ते

ओह यह तो दूध का बूँद है

बिलकुल सफ़ेद

वैसा जैसे अमृत

सफ़ेद मगर कितना पारदर्शी।

लेने को बढाया हाथ मगर

दूरियां लम्बी होती गयी

मेरी पहुँच से बहार

दूध की बूँद

अब अमृत हो गयी.


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