काले से रास्ते
सफ़ेद धुआं
डर हो रहा गुंजायमान लोग भागते अनगिनत दिशाओं में
लिए अपने चेहरे अपने हाथों में
देखते रहे आसमान को
कोई करिश्मा होने वाला हो जैसे।
तभी एक बूँद टपका कहीं से
लोग दौड़ पड़े बेतहाशा
एक दूसरे पर गिरते पड़ते
ओह यह तो दूध का बूँद है
बिलकुल सफ़ेद
वैसा जैसे अमृत
सफ़ेद मगर कितना पारदर्शी।
लेने को बढाया हाथ मगर
दूरियां लम्बी होती गयी
मेरी पहुँच से बहार
दूध की बूँद
अब अमृत हो गयी.
bhut hi sundar rachna...
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