Monday, September 27, 2010

दो बूँद

आज चाँद कैसे मेरी पेशानी पर चमक रहा है
क्यूँ ऐसा है कि में सर्द हो रहा हूँ
क्यूँ है कि मेरी सारी कायनात मेरे में सिमट रही है
क्यूँ मैं बस यूँ ही सर्द -ज़र्द तुम्हारे ख्यालों से लिपट कर रो रहा हूँ ।

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