मेरे अनजाने अनसुने पाठक लोग
(क्या है भी कोई)
संशय मेरे मन में
कौन पढता है कविता अब
जब लोगों में खूबसूरती देखने कि चाह ही नहीं हो बाकी
और न हो हिम्मत अपने बदसूरत चेहरे देखने का
जब सोच कुंद हो गयी हो
और दिमाग पैसे से भर गया हो
किताबें रद्दी में बेचीं जाती हों
कौन पढ़ेगा कविता?
एक सहज अनुभूति
कुछ पुरनम आँखें
कुछ भीगे से एहसास
अब तो बाज़ार में भी नहीं मिलते
लोग लायें तो कहाँ से ।
पढ़ते तो हैं.
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.
सादर
समीर लाल
ek ne haath pakad kar
ReplyDeletebahti dhara mein kheench liya
aur kahne laga
nao samajh lo
aur dariya paar kar jao.
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आप एवं आपके परिवार को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ!
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