Sunday, August 15, 2010

सुनो पाठक जी

मेरे अनजाने अनसुने पाठक लोग
(क्या है भी कोई)
संशय मेरे मन में
कौन पढता है कविता अब
जब लोगों में खूबसूरती देखने कि चाह ही नहीं हो बाकी
और न हो हिम्मत अपने बदसूरत चेहरे देखने का
जब सोच कुंद हो गयी हो
और दिमाग पैसे से भर गया हो
किताबें रद्दी में बेचीं जाती हों
कौन पढ़ेगा कविता?
एक सहज अनुभूति
कुछ पुरनम आँखें
कुछ भीगे से एहसास
अब तो बाज़ार में भी नहीं मिलते
लोग लायें तो कहाँ से ।

3 comments:

  1. पढ़ते तो हैं.

    स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.

    सादर

    समीर लाल

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  2. ek ne haath pakad kar
    bahti dhara mein kheench liya
    aur kahne laga
    nao samajh lo
    aur dariya paar kar jao.

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  3. स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आप एवं आपके परिवार को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ!

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