Wednesday, December 10, 2008

maine kaha tha....

तुम्हे याद हो या न याद हो
मैंने कहा था
फिर आयेगी यह काली अँधेरी रात
सनसनाती हवा लिए
और हमें डराने
हम डर भी जायेंगे
हमारी फितरत ही है कि हम डर ही जाते हैं
हमारी आदत सी बन गई है फिर
अब चाहे भूत हो या हो केवल छलावा
हम डरते ही रहे हैं
कभी धुप से तो कभी छाँव से
तो कभी बढती हुई परछाइयों से
हम डरें हैं अपने ख्यालों` से
सिहर कर फिर छुप गए थे
अपनी लम्बी मोटी चादर के नीचे
लगा कुछ देर डर भाग गया था
और हम चाँद कि तरह मुस्कुरा कर निकल आए थे
बादलों के बीच से
तभी चुप से
आ कर दबोच लिया था तुम्हारे ख्यालों ने
मैं क्या करता ?

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