रेत पर पसरा हुआ तुम्हारा ही अक्स था
जो छुआ मैंने तो मेरी पहचान बन गयी।
आज कुछ हुआ तो ज़रूर है क्यूंकि
किया तुमको याद और हवा ख्याल बन गयी।
जज़बे में था इस शहर के तौर तरीको का एहसास
मुझे से मिली तो हवा भी बदहवास बन गयी।
सोचो ज़रा क्या हुआ है हमारी इल्म औ तालीम को
कि एक खूबसुरत सी लड़की बला बन गयी।
या खुदा रहम कर अपने बन्दे पर एक बार
जो मेरा थी अब जाहिर-ए आम बन गयी।