kavita-akavita
ek afsaana sunaa sunaa saa
Friday, November 27, 2009
टूटा हुआ सपना
मैं चुन रहा हूँ
सपनों से रक्तरंजित कुछ पुराने घाव
आओ तुम भी चुन लो
न जाने कब काम आ जाए तुम्हारे
मैं तो बेच रहा हूँ
सस्ते हैं ।
घाव दुःख तो देते हैं
महंगे तो होते नहीं.
1 comment:
अजय कुमार झा
November 27, 2009 at 11:53 PM
वाह घावों को मूर्त रूप दे दिया आपने
अजय कुमार झा
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वाह घावों को मूर्त रूप दे दिया आपने
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