Friday, September 11, 2009

सफरनामा

एक सफरनामा लिख रहा हूँ मैं, ज़रा पढ़ कर तो बताओ
मेरे बारे में उन सफों में क्या लिखा है।
एक लम्बी सी ज़िन्दगी की कहानी कैसे लिखते हैं कुछ चंद पन्नो में
मेरा तो दिल घबराता है कि कहाँ से शुरू करुँ
इतनी सी बातें, इतने फ़साने, और इतनी रुस्वाईयां,
क्या क्या कहूं, क्या क्या लिखूं, किस से कहू, किस को सुनाऊँ।
ज़रा पास बैठो, और बताओ कि क्या लिखते हैं एक लम्बी कहानी में
कुछ सच, कुछ झूठ , कुछ सुनी, कुछ सुनायी और कुछ बस केवल ख्याली।
एक लम्बी सी दास्तान, एक बेमानी फ़साना, एक बेसुरा सा राग,
मेरे दोस्त बताओ क्या यही सफरनामा होता है?

Saturday, September 5, 2009

मैं किसी शाम का आगाज़ हूँ

आज जब याद आई मुझे अपनी किस्मत की बेवफाई
बहुत रोया मैं, बहुत देर रात तक।
क्यों मेरे दामन में नही गिरे महकते फूल
लिए कांटे हाथों में, मैं सोचता रहा देर रात तक।
मेरी परछायी भी रोती रही लिपट कर मुझसे
लिए अपने ख्वाब अपने हाथों में मैं भी रोता रहा देर रात तक।
मैं किसी शाम का आगाज़ हूँ , मुझे रौशनी न दिखाओ यारों
कहकहे तुम्हे मुबारक, मैं तो रोता रहा फिर देर रात तक.