Monday, September 27, 2010

दो बूँद

आज चाँद कैसे मेरी पेशानी पर चमक रहा है
क्यूँ ऐसा है कि में सर्द हो रहा हूँ
क्यूँ है कि मेरी सारी कायनात मेरे में सिमट रही है
क्यूँ मैं बस यूँ ही सर्द -ज़र्द तुम्हारे ख्यालों से लिपट कर रो रहा हूँ ।

बोलो तो.....

न हो सर पर आसमान तो क्या फ़िक्र
पांव के नीचे ज़मीन नहीं तो क्या फ़िक्र
ज़ुल्म सहने की अब आदत सी पड़ गयी है यारों
न हो पेट में दाना ओर तन पर कपडे तो क्या फ़िक्र।
तुम्हारी सियाह किस्मत पर लगाते हैं चांदनी का लेप
सुर्ख हो रही आदतों को लपेट कर पेशानी पर
जब बोलने को हो कुछ नहीं मगर चुप रहना मुमकिन नहीं
वह कहते हैं कि यही आगाज़ है कल की सुबह का।
मैं नहीं जानता कि सच के क्या रंग हैं
कितनी हवस है मेरी सोच में अपना वजूद जान ने की
मेरे दोस्तों की कतार जरा छोटी है
बस मेरी उमीदें अब मेरी चादर से लम्बी हो गयी हैं।

Sunday, September 26, 2010

एक ख्वाब धुंधला सा

कल रात दिखा मुझे माजी के फ़साने
कुछ सीधे कुछ टेढ़े
थामने को बढाया हाथ तो फिसल गए हाथों से
उड़ने लगी उम्मीदें
फ़ैल गए अरमान
छोटे पड़ गए दामन
लेट कर ज़मीन पर ताकता रहा नीले आसमान को देर त़क
अब तारे भी नहीं दीखते
चाँद तो पहले भी अजनबी था
अब तो हँसता भी नहीं।
देर से चल रही है तेज हवा
शायद तारे बह गए हवा के साथ
मेरा हाथ काँपता है
पकड़ नहीं पाता मैं चाँद को भी
देखो जरा मेरी पेशानी पर तारे उग आए हैं
हर किसी को पूछता हूँ उसका पता
सब सर हिलते हैं
कोई कुछ कहता नहीं।
हवा में बसी है धानी सी मस्ती
तुम्हारे हाथों की खुशबू
तुम्हारे चेहरे का तिल
तुम्हारे हाथों की स्वप्निल खुमारी
सोचता रहा
क्या कहूँगा इस बार.

Saturday, September 25, 2010

रहो खामोश.

देखो चारो तरफ
यह कैसी चुप्पी फैली है
महज कुछ लोगों के सांस लेने कि आवाज़
बस बोलती हैं अपनी उम्मीदें
बाकी सब चुप।
कैसे कहें कि किसके मुंह में है ज़बान
बोलता तो कोई कुछ भी नहीं
देखते सो सभी हैं
पर कहते कुछ नहीं
बस सर निचे किये चले जाते हैं।
और मुझे लगता है
इतना कुछ है देखने को
इतना कुछ है कहने को
फैली है दुर्गन्ध चारो तरफ
रुमाल से रूकती नहीं
चुभती है आँखों में।
या फिर ऐसा कहें
सड़क पर बिछा कर कालीनें
बंद कर हर दरवाज़े
कानों में ठूंस लें इतर के फाहे
और तुम्हारी ही तरह
बैठे चुप और मुस्कराए!
जब तक जिंदा हूँ ऐसा कैसे हो सकता है!!

Friday, September 24, 2010

एक लड़की को प्यार हुआ है !

देखो तो इस प्यारी सी लड़की के चेहरे पर
एक तिलस्मी मुस्कान है
जैसे जाड़े की सुबह में सुबकती हुई धुप
जैसे गर्मी पहली बारिश की सोंधी सी महक
जैसे उसके कंधो पर पड़ा पीला दुपट्टा
प्यार तो हुआ ही है।
मैंने पूछा तो बोली
प्यार कैसे होता है
अब इस सादगी पर जान कैसे न दें
कैसे बताऊँ की प्यार इस अनछुई अनजानी सी ख्याल का नाम है
तुम्हारे हाथ को छु कर देखा
फिर डर लगा
कहीं मुझे प्यार न हो जाये !