देखो चारो तरफ
यह कैसी चुप्पी फैली है
महज कुछ लोगों के सांस लेने कि आवाज़
बस बोलती हैं अपनी उम्मीदें
बाकी सब चुप।
कैसे कहें कि किसके मुंह में है ज़बान
बोलता तो कोई कुछ भी नहीं
देखते सो सभी हैं
पर कहते कुछ नहीं
बस सर निचे किये चले जाते हैं।
और मुझे लगता है
इतना कुछ है देखने को
इतना कुछ है कहने को
फैली है दुर्गन्ध चारो तरफ
रुमाल से रूकती नहीं
चुभती है आँखों में।
या फिर ऐसा कहें
सड़क पर बिछा कर कालीनें
बंद कर हर दरवाज़े
कानों में ठूंस लें इतर के फाहे
और तुम्हारी ही तरह
बैठे चुप और मुस्कराए!
जब तक जिंदा हूँ ऐसा कैसे हो सकता है!!
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