kavita-akavita
ek afsaana sunaa sunaa saa
Friday, November 6, 2009
कितने मोड़ और?
राहों में नही है
अब और कोई मोड़
सुना है इस सिम्त अब राहें हैं बेगानी
न हो छाँव तो धुप ही
सही
मुझे कहाँ अब एहसास है अब जीने के एहसास का
एक तुम हो तो है
बाकी
जश्ने बहारा
एक तुम हो तो है मेरे लबों पे कुछ थिरकन
एक सूरज की रौशनी में मैं हूँ।
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